शख्त प्रतिबंध.. सुनसान राहें, खामोश चौराहे… बस इंतज़ार है दौरे संकट से गुजरने का

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 जावेद खान 
गोंदिया। पिछले 5 अप्रैल से जारी लॉक डाऊन के दिशा निर्देशों व फिर 14 अप्रैल से सख़्त प्रतिबंध के आदेश लागू होने पर पूरा महाराष्ट्र कोविड संक्रमण के खतरे के साथ- साथ बेरोजगारी के संकट से जूझ रहा है। व्यापार ठप्प पड़ा है। धंधे चौपट हो गए। पूरे राज्य में सन्नाटा पसरा पड़ा है।
   गोंदिया में दिखाई देती सुनसान राहें, और खामोश चौराहे ये बयान करते है कि किस तरह से आम नागरिक खुद की व परिवार की स्वास्थ्य सुरक्षा को लेकर संगीन है। लोग घरों में कैद से हो गए है। अपनों से अपनो की दूरी बनाये रखें हुए है। रिश्ते-नातों में ब्रेक द चैन की लाइन खिंच गई है। अब बस सिर्फ इंतजार कर रहे है इस संकट के टलने का…
   इस संचारबंदी, तालाबंदी, कर्फ्यू और कड़े प्रतिबंध के रूप में आम नागरिक घरों में ख़ौफ़ज़दा होकर ऊब सा गया है। व्यापार बंद होने से गरीब की हालत बदतर से बदतर हो गई है। लोग चाय, होटल इत्यादि धंदे छोड़कर सब्जी और फल के ठेले लगाकर जीवन निर्वाह कर रहे है।
   2020 में कोरोना संकट के दौरान आमनागरिक आगे आकर एक दूसरे की मदद कर रहे थे, अनेको सामाजिक एनजीओ ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और अपना सामाजिक दायित्व निभाया, असहाय, निर्धन, बेआश्रितों को जरूरत का खाद्यान्न उपलब्ध कराया, पर अब ऐसा कुछ नहीं है। इस संकट में सब सहमें हुए है। और इसे देखते हुए ही ये सब हो रहा है।
आम नागरिक बंद को लेकर बड़े संकट में है। गर्मी में जनता, बिजली बिलों की अदायगी को लेकर चिंतित है। मकानों में किराये से रह रहे किरायेदार महीने के किराए को लेकर चिंतित है। जनता सरकारो से भी बहोत नाराज है। एक तरफ बीमारी तो दूसरी तरफ आफत है। रोजमर्रा कमाने वाले कोरोना से कम ओर इनसब परेशानीयों से ज्यादा चिंतित है।
अगर सरकारें जनता को राहत देना चाहती है तो सबसे पहले उनकी मूलभूत आवश्यकताओं को निशुल्क कर देना चाहिए। जैसे बिजली, पानी, आवासीय किराया, अनाज, सब्जियां, दवाइयां, उपचार…
कोरोना संकट से महाराष्ट्र के लोग जिस तरह आज गुजर रहे है, वैसा प्रभाव अन्य राज्यो में दिखाई नही देता। एक बड़े संकट में हमनें पूरे देश को तालाबंदी में देखा है। हजारों लोगों ने पैदल चलकर मौत देखी है।भयंकर से भयंकर तकलीफों का सामना किया है। अब जब कोरोना फिर लौटकर अपना आकार बदलकर हाहाकार मचा रहा है, तब ऐसे में देश में कोई तनाव नहीं देखा जा रहा। ये सवाल भी मन को संकोचित करता है।

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