राजा रावण की “दहन कुप्रथा” बंद हो, आदिवासी समाज संगठनों द्वारा जिलाधिकारी सहित अन्य अधिकारियों को निवेदन

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प्रतिनिधि। 09 अक्तूबर
गोंदिया। अखंड ज्ञानी एवं आदिवासी समाज के पूज्य देवता राजा रावण को एक कुप्रथा के तहत दशहरे के दिन जलाया जाता है। इस कुप्रथा के चलन से आदिवासी समाज आहत है एवं उनकी भावना को ठेस पहुँचाने का कार्य किया जा रहा है। इसी राजा रावण दहन के विरोध में आकर सभी आदिवासी समुदाय के संगठन एक हो गए है एवं जिला प्रशासन के माध्यम से इस कुप्रथा की रोक हेतु आवाज बुलंद कर रहे है।

नेशनल आदिवासी महिला मंडल व नेशनल आदिवासी पीपल्स फेडरेशन गोंदिया जिला द्वारा जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक एवं अन्य प्रशासकीय अधिकारियों को प्रेषित निवेदन में लिखा गया है कि, दशहरे के दिन चलायी जा रही राजा रावण की दहन प्रक्रिया बंद होनी चाहिए। इस कुप्रथा से समाज आहत है एवं उनकी भावना को ठेस पहुंचाई जा रही हैं।

उन्होंने लिखा कि, देश के अनेक राज्यों में राजा रावण के अनेक मंदिर है। तमिलनाडु में अकेले 352 मंदिर है, वही मध्यप्रदेश के मंदसौर में विशाल मूर्ति है। हम उनकी आराधना व पूजा करते है। उनके वास्तविक इतिहास पर ध्यानकेन्द्रित किया जाना चाहिए। इस कुप्रथा की परंपरा को जानबूझकर चलाया जा रहा है, ऐसे लोगो पर सवैधानिक तौर पर कार्रवाई की जानी चाहिए। उन्होंने ये भी कहा कि अगर राजा रावण के दहन का प्रयास किया जाता है तो वे संगठन के माध्यम से तीव्र निषेध करेंगे।

निवेदन देंते समय एडवोकेट विवेक धुर्वे, संगीता पुसाम, छाया दुर्गे, प्रमिला सिन्द्रामे, वनिता चिचाम, नीलकंठ चिचाम सर, करण टेकाम, हेमंत पंधरे, भरत घासले, नरेंद्र सिन्द्रामे आदि सहित अनेक लोगो की उपस्थिति रही।

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