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पालावरची शाला की आदर्श बेटी “अर्पिता ने कक्षा 10वीं में लिए 77.70 प्रतिशत अंक..
गोंदिया।
हौसले बुलंद हो तो तकदीर भी झुककर सलाम करती है। एक गरीब घर की बेटी ने इन्ही हौसलों की उड़ान से 10 की परीक्षा में 77.70 प्रतिशत अंक लेकर पूरी स्कूल का नाम रोशन कर दिया है।
इस होनहार बेटी का नाम है अर्पिता रंगारी, जिसने कुड़वा स्थित मांग गारोड़ी बस्ती स्थित पालावरची शाला में अध्ययन कर अपने जीवन को निखारने का कार्य किया है। अर्पिता का जब ऑनलाइन रिजल्ट आया तो वो खुश तो हुई पर पालावरची शाला के प्रशांत बोरसे सर को फोन लगाकर कहने लगी, “सर अंक कम पड़ गए, अगली बार मैं आपको ज्यादा अंक लाकर दिखाऊंगी।
अर्पिता बेटी के हौसलों को देख प्रशांत बोरसे सर उसकी हिम्मत बांधी और उसे बेहतर नतीजे लाने पर बधाई दी।

भटके विमुक्त कल्याणकारी परिषद अंतर्गत संचालित पालावरची शाला गोंदिया के कुड़वा ग्राम में मांग गारोड़ी बस्ती के भीतर एक टीन के शेड में प्रशांत बोरसे द्वारा चलायी जा रही है। इस शाला को चलाने का उद्देश्य सिर्फ मांग गारोड़ी बस्ती के लोगो को शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ाना है। इसी शाला में अर्पिता दूसरी या तीसरी क्लास से आयी थी।
प्रशांत बोरसे सर सोशल मीडिया पर डाली गई अपनी पोस्ट पर लिखते है, ” अर्पिता सदैव मुस्कुराती, हंसती और पढ़ाई में मशगूल रहने वाली छात्रा रही। घर में पढ़ाई जैसे वातावरण का तो कभी अनुभव ही नही रहा। पिता के होते हुए भी तुम कभी अपने पिता के छत्रछाया का अनुभव नही कर पाई। अर्पिता का पूरा घर मतलब एक छोटा सा कमरा जितना कि लोगो का बाथरूम होता है।
प्रशांत बोरसे सर के मार्मिक अल्फाज, अर्पिता को समर्पित रहे, चूंकि उन्होंने इस छोटी सी बिटिया को बड़े पेड़ बनाने में अहम किरदार निभाया है। बोरसे सर आगे लिखते है, ” जब तुम्हारी माँ सुबह काम पर जाती तो घर की सारी जिम्मेदारी तुम ही संभालती, गर्मियों में पापड़, कुरोड़िया बनाती, दिवाली में फराल और शादी के सीजन में मेहंदी के ऑर्डर लेती। इतना करते हुए भी अर्पिता ने कभी पालावरची शाला से छुट्टी नही ली। दिवाली हो, दशहरा हो या होली, त्योहारों पर भी तुम दूसरों बच्चों के साथ पालावरची शाळा पर आती ही थी। तुम कभी बीमार हो, तुम्हारे वार्षिक परीक्षा हो, या फिर तुम्हारे रिश्तेदारों में शादी-विवाह का कार्यक्रम हो, तो तुम्हारी माँ कहती थी कि “सर इसे छुट्टी लेने को कहिए ।” पर तुमने कभी पालावरची शाळा से छुट्टी नहीं ली। मैंने ही खुद नाराज होकर कई बार तुम्हे कहा कि तुम कभी तो छुट्टी ले लिया करो, तब तुम नाराज हो जातीं, गुस्सा हो कर रुसूबाई बन जातीं। अंत में मुझे ही तुम्हारी माँ को समझाना पड़ता कि ” रहने दीजिये ईसे शाला में, मैं देख लूंगा।” अर्पिता का जवाब हमेशा यही होता, “सर, मुझे पालावरची शाळा के बिना घर पर रहना अच्छा नहीं लगता।
प्रशांत बोरसे सर आगे लिखते है, ” मैं जब भी स्कूल आया, पढ़ाने लगा, और तुम्हारी प्यारी हंसी फीकी पड़ी, ऐसा कभी नहीं नहीं हुआ। पालावरची शाळा के आचार्यों के अब्सेंट रहने पर भी अर्पिता बिना कहे ही तुरंत सारे बच्चों को संभालने लग जाती, शाला के हर कार्यक्रम और उत्सव में अर्पिता का योगदान होता ही था।
अर्पिता ने पालावरची शाला से अपने लगाव के चलते अनेक कार्यक्रम रद्द किए। इस वर्ष, समिति के प्रशिक्षण शिविर में शिक्षिका के रूप में जाने के समय, तुमने अपनी सबसे प्रिय दोस्त के विवाह का न्योता रद्द कर दिया, सीजन के लिए हुए कई मेंहदी के ऑर्डर भी रद्द कर दिए। शिविर के दौरान तुमने शाळा का नाम रोशन किया, सबकी प्यारी बन गई, और अन्ततः एक अच्छी शिक्षिका के रूप में सभी ने तुम्हारी प्रशंसा की।
इस वर्ष तुम्हारा दसवीं का साल था, घरेलू परिस्थितियों के कारण तुम किसी भी निजी क्लास या ट्यूशन नहीं ले पाई। लेकिन पालावरची शाळा आकर तुमने पूरे मन से पढ़ाई की और उसका फल तुम्हें मिला।
इस साल तुम दसवीं में 77.70 प्रतिशत अंक लेकर पास हुई। घर की विषम परिस्थितियो में तुमने जो सिद्ध करना था, तुमने किया बेटा। इसका हमें गर्व है।
तुम्हारे प्रशांत सर, निर्मल मैडम और पालावरची शाला में हर शिक्षक, विद्यार्थी, सभी को आप पर गर्व है। आप सदैव एक आदर्श छात्रा बनकर इन सारे वंचित बच्चों के सामने उभर कर सामने आयी हो। आपके आगे आने वाली हर चुनौती के पीछे हम भटके विमुक्त कल्याणकारी परिषद मजबूती से खड़ी है।