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प्रतिनिधि। 26 जुलाई
मुंबई। दिवंगत शिवसेना सुप्रीमो बालासाहेब ठाकरे के दौर में 1995 और 1999 में गोंदिया विधानसभा क्षेत्र से दो बार विधायक रहकर शिवसेना का परचम लहराने वाले रमेश कुथे ने वर्ष 2019 में शिवसेना छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया था। अब 6 साल बाद फिर पूर्व विधायक रमेश कुथे ने अपने बेटे और भाई के साथ शिवसेना में घर वापसी की है।
पूर्व विधायक रमेश कुथे, वर्ष 2004 का विधानसभा चुनाव हार गए थे। तब से वे राजनीति से दूर हो गए थे। पर 2019 में उन्होंने फिर भाजपा में कदम रखकर राजनीति में सक्रियता दिखाई थी। परंतु उनका आरोप है कि भाजपा ने उन्हें बेवकूफ बनाने का कार्य किया। उन्होंने कहा, भाजपा ने कहा था कि उन्हें अवसर दिया जाएगा, पर भाजपा ने ऐसा नही किया। भाजपा के लोग झूठ बोलकर पक्ष प्रवेश कराते है और फिर बेवकूफ बनाते है।
पूर्व विधायक रमेश कुथे ने आज 6 साल बाद मुंबई के मातोश्री पहुँचकर शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के हाथों शिवबंधन बांधकर एवं दिवंगत नेता बाळासाहेब ठाकरे को नमन कर शिवसेना में अपनी घर वापसी की।
रमेश कुथे के घर वापसी के दौरान उद्धव ठाकरे शिवसेना के जिलाप्रमुख पंकज यादव, शैलेश जायसवाल की उपस्थिति रही। वही रमेश कुथे के छोटे भाई दूध संघ के अध्यक्ष राजकुमार कुथे और उनके बेटे जिला परिषद में सभापति रूपेश कुथे ने भी शिवबंधन बांधकर घर वापसी की।
कुथे परिवार के शिवसेना में वापसी से गोंदिया का राजनीतिक समीकरण फिर बिगड़ गया है। कल तक महाविकास आघाडी से गोंदिया विधानसभा सीट पर कांग्रेस दावा कर रही थी, पर अब माविआ गठबंधन से शिवसेना में नई एंट्री होने से सीट शिवसेना को फिसलती दिखाई दे रही है।
अगर सीट उद्धव ठाकरे शिवसेना को जाती है तो, गोंदिया में त्रिकोणी राजनीतिक संघर्ष निर्माण होगा। यहां एनसीपी-भाजपा भी सीट के लिए हाथापाई कर रही है। इनमें ये सीट किसे मिलती है ये तो वक्त ही बताएगा। यहां एनसीपी से पूर्व विधायक राजेन्द्र जैन और भाजपा से पूर्व विधायक गोपालदास अग्रवाल लाइन में है।
इन सब में महत्वपूर्ण नजर निर्दलीय विधायक विनोद अग्रवाल पर है। विनोद अग्रवाल भाजपा से 2014 का विधानसभा चुनाव हारकर 2019 में चाबी चिन्ह से निर्दलीय चुनाव जीते थे। उन्होंने कांग्रेस से भाजपा में आकर चुनाव लड़े गोपालदास अग्रवाल को चुनाव हराया था।
विनोद अग्रवाल ने हाल में संम्पन्न हुए लोकसभा चुनाव में महायुति गठबंधन को सहयोग किया था। ऐसा भी हो सकता है कि कही महायुति से टिकट भाजपा, सेना, एनसीपी को छोड़ चाबी को मिल जाये। ऐसे में भाजपा, एनसीपी के सपनो पर पानी फिर जाएगा।
अगर ऐसा हुआ तो फिर लड़ाई सिर्फ शिवसेना, चाबी में होंगी। और अगर ऐसा नही होता है तो फिर एनसीपी-भाजपा में से कोई एक और मैदान में होगा जिसकी लड़ाई चाबी, शिवसेना से त्रिकोणीय होगी।
फिलहाल राजनीतिक चित्र कुछ ऐसा ही है। कुथे परिवार के शिवसेना एंट्री से राजनीति में बदलाव आया है।